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ग़ज़ल
बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मोहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बरसों ब'अद मिले तो ऐसी प्यास भरी थी आँखों में
भूल गया मैं बात बनाना वो शर्माना भूल गई
ख़ावर अहमद
ग़ज़ल
बाँकी सज-धज आन अनूठी भोली सूरत शोख़-मिज़ाज
नज़रों में खुल खेल लगावट आँखों में शर्माना है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
वो पहली शब में पहले तो झिजकना और शर्माना
मुझे है याद फिर ख़ुद ही तिरा मुझ से लिपट जाना
विजय अरुण
ग़ज़ल
याद आता है क्या क्या तलब-ए-बोसा-ए-लब पर
मुँह फेर के घूँघट में वो शर्माना किसी का
नवाब उमराव बहादूर दिलेर
ग़ज़ल
नज़रों से नज़रें मिलते ही शर्माना झिजकना झुँझलाना
ओ नाज़-ओ-अदा वाले यूँ भी ताईद-ए-मोहब्बत होती है
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
ग़लती कर के अख़बारों में छपवाने का फैशन है
अपने किए पर हम शर्माना और पछताना भूल गए
डॉ अंजना सिंह सेंगर
ग़ज़ल
हमें शर्म-ओ-हया का दर्स ऐसे लोग देते हैं
कि जिन को अपनी लग़्ज़िश पे भी शर्माना नहीं आता
ज़िया कर्नाटकी
ग़ज़ल
हमारे जुर्म-ए-उल्फ़त की तो की शोहरत ज़माने में
मगर अपनी जफ़ा पर उन को शर्माना नहीं आता