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ग़ज़ल
शोर-शराबा ख़ून-ख़राबा जो भी हो कुछ कम भी नहीं
शहर-पनाह के आहनी बोझल सब दरवाज़े टूट गए
शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा
ग़ज़ल
शहर-पनाह की दीवारों पर इक दुज़दाना आहट है
और मैं उस को देख रहा हूँ शहर तो सारा नींद में है
रज़ी अख़्तर शौक़
ग़ज़ल
बोसीदा ख़दशात का मलबा दूर कहीं दफ़नाओ
जिस्मों की इस शहर-ए-पनाह में ताज़ा शहर बसाओ
अली अकबर अब्बास
ग़ज़ल
हमें ख़बर थी शहर-ए-पनाह पर खड़ी सिपाह मुनाफ़िक़ है
हमें यक़ीं था नक़ब-ज़नों से ये दस्ता मिल जाएगा
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
बन से फ़सील-ए-शहर तक कोई सवार भी नहीं
किस को बिठाएँ तख़्त पर गर्द-ओ-ग़ुबार भी नहीं