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ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
मैं गुलचीं था बहार-ए-ज़िंदगी के गुल्सितानों का
जो दिन फूलों में बीते थे वो अक्सर याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
क्यूँ जानते हैं सनअत-ओ-हिरफ़त को बाग़-ए-ख़ुल्द
ग़ैरों की हम निगाह में हैं ख़ार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मर चुका मैं तो नहीं उस से मुझे कुछ हासिल
बरसे गर पानी की जा आब-ए-बक़ा मेरे ब'अद
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी
मय बड़ी इफ़रात से थी फिर भी सरशारी न थी
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
गुमाँ होता है जिन मौजों पे इक नक़्श-ए-हुबाबी का
उन्ही सोई हुई मौजों में कुछ तूफ़ान पलते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता
न हो सब के लिए गर्दिश में जाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
वो कौन शख़्स था कल रात बज़्म-ए-याराँ में
जो क़हक़हों में भी शामिल था सोगवार भी था