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ग़ज़ल
शिकायत है मुझे या रब ख़ुदावंदान-ए-मकतब से
सबक़ शाहीं बच्चों को दे रहे हैं ख़ाक-बाज़ी का
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
गुज़र-औक़ात कर लेता है ये कोह ओ बयाबाँ में
कि शाहीं के लिए ज़िल्लत है कार-ए-आशियाँ-बंदी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
वो फ़रेब-ख़ुर्दा शाहीं कि पला हो करगसों में
उसे क्या ख़बर कि क्या है रह-ओ-रस्म-ए-शाहबाज़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
उसी 'इक़बाल' की मैं जुस्तुजू करता रहा बरसों
बड़ी मुद्दत के बा'द आख़िर वो शाहीं ज़ेर-ए-दाम आया
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
हैं नवाह-ए-दिल में 'शाहीं' कुछ नशेबी बस्तियाँ
डूबता रहता हूँ उन में पानी भर जाने के बा'द
जावेद शाहीन
ग़ज़ल
खुल गई थी साफ़ गर्दूं की हक़ीक़त ऐ 'मजाज़'
ख़ैरियत गुज़री कि शाहीं ज़ेर-ए-दाम आ ही गया