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ग़ज़ल
क्या सबब क्या वज्ह क्यूँ आ कर निकल जाए शिकार
क्यूँ निशाना पर न जाएगा हमारा तीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
वाँ है वही वुफ़ूर-ए-इताब-ओ-जफ़ा-ओ-क़हर
याँ नाज़ भी उठाने की ताक़त नहीं रही
मुंशी बिहारी लाल मुश्ताक़ देहलवी
ग़ज़ल
शिकार-ए-काकुल-ओ-रुख़ हो चुका दिल-ए-'मैकश'
शिकार-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार क्या होगा