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ग़ज़ल
शिद्दत-ए-दर्द में एहसास का किरदार मियाँ
अपने होने में कहाँ ख़ुद का है इज़हार मियाँ
विशाल खुल्लर
ग़ज़ल
फ़य्याजुद्दीन साइब
ग़ज़ल
मदद तो इतनी कर ऐ शिद्दत-ए-दर्द-ए-निहाँ मेरी
निकल जाए तड़प कर जिस्म से रूह-ए-रवाँ मेरी
मुंफरीद गोरखपुरी
ग़ज़ल
देखना ऐ 'दर्द' हो जाएँगे दिल कितने असीर
ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ आज वो खोले हुए महफ़िल में है
दर्द सिरोंजी
ग़ज़ल
ग़म जुदाई का शब-ए-फ़ुर्क़त में दिल पर हमनशीं
दर्द बन कर छाएगा मैं ने कभी सोचा न था
दर्द सिरोंजी
ग़ज़ल
तेरा हर ग़म है तरब-ख़ेज़ तिरे ग़म की क़सम
शिद्दत-ए-दर्द से मसरूर हुआ जाता हूँ