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ग़ज़ल
मेरे शीतल मन की ज्वाला को तो और भी भड़काया
लोग न जाने क्या कहते हैं गँगा-जल के बारे में
प्रेम वारबर्टनी
ग़ज़ल
लाख दुखों के पर्बत टूटे फिर भी कितना शीतल है
काश कि तेरे मन सा निर्मल होता मेरा मन साजन
वासिफ़ यार
ग़ज़ल
तेरे रूप में या चंदा की किरनें सेज पे सोती हैं
चाँदी की शीतल थाली में या जूही का गजरा है
ताज महजूर
ग़ज़ल
लाख दुखों के पर्बत टूटे फिर भी कितना शीतल है
काश के तेरे मन सा निर्मल होता मेरा मन साजन
वासिफ़ यार
ग़ज़ल
झाँक रहे हो दूर से अब तक शीतल नैन कँवल में क्या क्या
डूब के देखो इन आँखों में कितनी ही गहराई होगी