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ग़ज़ल
जब कभी आया तो ज़िक्र-ए-मय-ए-गुलफ़ाम आया
कुफ़्र आया तिरे रिंदों को न इस्लाम आया
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
नशा उतरा मगर अब भी तुम्हारी मस्त आँखों से
पिए थे जो मय-ए-उल्फ़त के साग़र याद आते हैं