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ग़ज़ल
नसीम आई बहार आई पयाम-ए-जाँ-फ़िज़ा लाई
'ख़याली' ज़िंदगी अब ज़िंदगी मा'लूम होती है
मोहम्मद नईमुल्लाह ख़्याली
ग़ज़ल
अजब अंदाज़ से आई है कुछ अठखेलियाँ करती
शमीम-ए-जाँ-फ़िज़ा के पास कुछ पैग़ाम है शायद
राज कुमार सूरी नदीम
ग़ज़ल
नवेद-ए-जाँ-फ़िज़ा है क्या ख़बर क़ातिल के आने की
बताओ तो सही तुम 'दाग़' ऐसे शादमाँ क्यूँ हो
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
इलाही क्या मिरे दिलबर ने खोला अपने गेसू को
मशाम-ए-जाँ में अपने आ के बू-ए-जाँ-फ़िज़ा ठहरी
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
किसी की बू-ए-पैराहन गुलिस्ताँ से गुज़रती है
शमीम-ए-जाँ-फ़िज़ा बन कर कभी बाद-ए-सबा हो कर
राज कुमार सूरी नदीम
ग़ज़ल
जमाल-ए-जाँ-फ़िज़ा का उन के दिलकश दिल-रुबा जल्वा
ज़मीं से आसमाँ तक है मकाँ से ला-मकाँ तक है
उरूज क़ादरी
ग़ज़ल
सरापा सोज़ लेकिन जाँ-फ़िज़ा मा'लूम होती है
सदा-ए-साज़-ए-दिल हक़ की सदा मा'लूम होती है
राज़ चाँदपुरी
ग़ज़ल
जावेद सिद्दीक़ी आज़मी
ग़ज़ल
उस की सुब्हें दिल-कुशा हैं उस की शामें जाँ-फ़िज़ा
खो गया जो शख़्स लुत्फ़-ए-नाला-ए-शब-गीर में
क़ासिम जलाल
ग़ज़ल
उसी सनम के लिए ख़्वार हम यहाँ कम हैं
मिरे रक़ीब हमें क्या अज़ाब-ए-जाँ कम हैं