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ग़ज़ल
इस नगरी में क्यूँ मिलती है रोटी सपनों के बदले
जिन की नगरी है वो जानें हम ठहरे बंजारे लोग
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना
जितने भी हैं रूप तुम्हारे जीते-जी दिखला देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
बेदारी आसान नहीं है आँखें खुलते ही 'अमजद'
क़दम क़दम हम सपनों के जुर्माने भरने लगते हैं
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
धूप आँखों तक आ पहुँची है रात गुज़र गई जानाँ
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
उजड़ी यादो टूटे सपनो शायद कुछ मालूम हो तुम को
कौन उठाता है रह रह कर टीसें शाम-सवेरे दिल में
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
अश्कों की उजली कलियाँ हों या सपनों के कुंदन फूल
उल्फ़त की मीज़ान में मैं ने जो था सब कुछ तोल दिया
शकेब जलाली
ग़ज़ल
मिरी बातें जीवन सपनों की मिरे शेर अमानत नस्लों की
मैं शाह के गीत नहीं गाता मुझ से आदाब नहीं होता
सलीम कौसर
ग़ज़ल
हम से रूठ के जाने वालो इतना भेद बता जाओ
क्यूँ नित रातो को सपनों में आते हो मन जाते हो
हबीब जालिब
ग़ज़ल
माज़ी के हर एक वरक़ पर सपनों की गुल-कारी है
हम से नाता तोड़ने वालो कितने नक़्श मिटाओगे
मुर्तज़ा बरलास
ग़ज़ल
वो दिन कब के बीत गए जब दिल सपनों से बहलता था
घर में कोई आए कि न आए एक दिया सा जलता था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
उस की सपनों वाली परियाँ क्यूँ मैं देख नहीं पाता
बच्चा हैराँ है मुझ पर मैं बच्चे की हैरानी पर
अखिलेश तिवारी
ग़ज़ल
कच्चे सपनों से अच्छा है पक्की नींदें सो लेना
ऐसे ख़्वाब को क्या रोना जो पलक के बाल से टूट गया