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ग़ज़ल
ग़ुलाम मुस्तफ़ा दाइम
ग़ज़ल
सफ़ेदी ख़ाना-ए-दिल में सियह-कारों के फेरेंगे
नहीं मिम्बर पे वाइ'ज़ पाड़ पर मे'मार बैठे हैं
ज़रीफ़ लखनवी
ग़ज़ल
है फ़क़त आलम-ए-बाला से मदद मस्तों की
कौन जुज़ माह करे ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार सफ़ेद
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
है दु'आ होंटों पे और हैं ख़्वाहिशें हाथों के बीच
काम दुनिया के निकलते हैं मुनाजातों के बीच
जावेद शाहीन
ग़ज़ल
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
उस के ख़त में जो लिखा ग़ैर का मैं नाम उल्टा
लाया क़ासिद भी मुझे वाँ से तो पैग़ाम उल्टा