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ग़ज़ल
एक हों नालाँ क़फ़स में हाए ऐ बुलबुल ख़मोश
सुन तिरा आवाज़ और सहरा हुआ है सब्ज़-पोश
लुत्फ़ुन्निसा इम्तियाज़
ग़ज़ल
शाहिद माकुली
ग़ज़ल
यही ख़्वाहिश है मेरे सब्ज़-पोशों के क़बीले की
मुझे फिर इस ज़मीं को कर्बला-मंज़र बनाना है