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ग़ज़ल
सिर्फ़ ज़ाहिर हो गया सरमाया-ए-ज़ेब-ओ-सफ़ा
क्या तअ'ज्जुब है जो बातिन बा-सफ़ा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
क्या मिला आख़िर तुझे सायों के पीछे भाग कर
ऐ दिल-ए-नादाँ तुझे क्या हम ने समझाया न था
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
क्या यार की बद-ख़़ूई क्या ग़ैर की बद-ख़्वाही
सरमाया-ए-सद-आफ़त है दिल ही का आ जाना
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
कहीं सरमाया-ए-महफ़िल थी मेरी गर्म-गुफ़्तारी
कहीं सब को परेशाँ कर गई मेरी कम-आमेज़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
गए वो दिन कि दिल सरमाया-दार-ए-दर्द-ए-पैहम था
मगर आँखों की अब तक मीर-सामानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मर्द-ए-दरवेश का सरमाया है आज़ादी ओ मर्ग
है किसी और की ख़ातिर ये निसाब-ए-ज़र-ओ-सीम