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ग़ज़ल
हमें ये इश्क़ तब से है कि जब दिन बन रहा था
शब-ए-हिज्राँ जब इतनी सरसरी होती नहीं थी
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
तिरा हर कमाल है ज़ाहिरी तिरा हर ख़याल है सरसरी
कोई दिल की बात करूँ तो क्या तिरे दिल में आग तो है नहीं
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
ये जो सरसरी सी नशात है ये तो चंद लम्हों की बात है
मिरी रूह तक जो उतर सके मुझे उस ख़ुशी की तलाश है