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ग़ज़ल
है शोर सा तरफ़ तरफ़ कि सरहदों की जंग में
ज़मीं पे आदमी नहीं फ़लक पे क्या ख़ुदा नहीं
इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
विसाल की सरहदों तक आ कर जमाल तेरा पलट गया है
वो रंग तू ने मिरी निगाहों पे जो बिखेरा पलट गया है
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
वो ज़मीं की सरहदों में ही रहा 'अंजुम' मुक़ीम
क्यूँ तलाश इंसान को फिर आसमानों में रही
आनन्द सरूप अंजुम
ग़ज़ल
पढ़िए उन को किसी काग़ज़ पे नहीं सरहद पर
अपने ख़ूँ से जो शहादत की ग़ज़ल लिखते हैं
अशोक मिज़ाज बद्र
ग़ज़ल
अब जुनूँ की सरहदों से आ मिला है जोश-ए-इश्क़
कुछ समझ कर अब निगाह-ए-हुस्न बरहम कीजिए
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
फिर सुना है सरहदों पर बढ़ गईं सर-गरमियाँ
फिर से होगा चाक सीना इस लिए बेचैन हूँ