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ग़ज़ल
हर-चंद मिस्ल-ए-ख़ाना-ए-दुनिया-ए-बे-सबात
मैं ख़ानुमाँ-ख़राब बना पर बिगड़ गया
सय्यद अाग़ा अली महर
ग़ज़ल
शाख़-ए-दिल से झड़ने लगते हैं समर उम्मीद के
ख़ामुशी में गूँजती है जब सदा-ए-पेश-ओ-पस
माहम हया सफ़दर
ग़ज़ल
कोई तो है जो इस हैरत-सरा-ए-नूर-ओ-ज़ुल्मत में
सितारे को ज़िया आईने को तिमसाल देता है
फ़रासत रिज़वी
ग़ज़ल
हो गया मेहमाँ-सरा-ए-कसरत-ए-मौहूम आह!
वो दिल-ए-ख़ाली कि तेरा ख़ास ख़ल्वत-ख़ाना था