आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "सर्फ़-ए-लहू"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "सर्फ़-ए-लहू"
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
हर चीज़ की गिरानी ने वीरान कर दिया
सर्फ़-ए-ख़िज़ाँ है हिन्द का गुलज़ार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
जब सर्फ़-ए-गुफ़्तुगू हूँ तो देखे उन्हें कोई
मंज़ूर हो जो अब्र-ए-गुहर-बार देखना
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तू जो तलवार से नहलाए लहू में मुझ को
ग़ुस्ल-ए-सेह्हत हुआ भी इश्क़ की बीमारी से
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
ग़ज़ल
क्या पिघलता जो रग-ओ-पै में था यख़-बस्ता लहू
वक़्त के जाम में था शोला-ए-तर ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
'सुरूर'-ए-सादा को यूँ तो लहू रोना ही आता है
मगर इस सादगी में भी बड़े पहलू निकलते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
मिरे लहू में अब इतना भी रंग क्या होता
तराज़-ए-शौक़ में अक्स-ए-रुख़-ए-निगार भी है
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
हिना तेरे कफ़-ए-पा को न उस शोख़ी से सहलाती
ये आँखें क्यूँ लहू रोतीं उन्हों की नींद क्यूँ जाती
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
हम उन्हीं अहल-ए-वफ़ा के चाहने वालों में हैं
आसमाँ जिन के लिए सदियों लहू बरसाए है
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
निशान-ए-ज़ख़्म पे निश्तर-ज़नी जो होने लगी
लहू में ज़ुल्मत-ए-शब उँगलियाँ भिगोने लगी