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ग़ज़ल
तू भी हरे दरीचे वाली आ जा बर-सर-ए-बाम है चाँद
हर कोई जग में ख़ुद सा ढूँडे तुझ बिन बसे आराम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शाख़-ए-बुलंद-ए-बाम से इक दिन उतर के देख
अम्बार-ए-बर्ग-ओ-बार-ए-ख़िज़ाँ में बिखर के देख
अकबर हैदराबादी
ग़ज़ल
नज़र नज़र पे सर-ए-बज़्म है नज़र उन की
नज़र नज़र में सलाम-ओ-पयाम होता है