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ग़ज़ल
तिश्ना-लब कोई जो सर-गश्ता सराबों में रहा
बस्ता-ए-वहम-ओ-गुमाँ भागता ख़्वाबों में रहा
शरर फ़तेह पुरी
ग़ज़ल
हुई सर-गश्ता ख़ाक अपनी ग़ुबार-ए-कारवाँ हो कर
मुझे क़िस्मत सताती है रक़ीब-ए-कामराँ हो कर
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
क्या कहें उस को ब-जुज़ सर-गश्ता-ए-फ़हम-ओ-ख़िरद
जिस को दीवाना कहा दुनिया ने दाना हो गया
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
ग़ज़ल
दिल-ए-सर-गश्ता भी तो एक बला में है फँसा
कभी खोली है कभू ज़ुल्फ़-ए-दोता बाँधे है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
दर्द की इक लहर बल खाती है यूँ दिल के क़रीब
मौज-ए-सर-गश्ता उठे जिस तरह साहिल के क़रीब
आलमताब तिश्ना
ग़ज़ल
कोई सर-गश्ता-ए-रस्म-ए-जुनूँ है नारा-ज़न 'अतहर'
सर-ए-शहर-ए-ख़मोशाँ कैसी आवाज़-ए-अज़ाँ आई
अतहर ज़ियाई
ग़ज़ल
गर्दिश से पुतलियों की सर-गश्ता है ज़माना
मस्ती से उस निगह की मय-ख़ाने बावले हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
सर-गश्ता वो सहरा-ए-मुसीबत में न होगा
जिस ने तिरी ज़ुल्फ़ों को परेशाँ नहीं देखा
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
'मुसहफ़ी' मैं हूँ वो सर-गश्ता कि ख़ुर्शीद की तरह
शाम गर और कहीं की तो सहर और कहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ऐ यार जुस्तुजू में तिरी सूरत-ए-ग़ुबार
सर-गश्ता हूँ प गर्दिश-ए-दौराँ से दूर हूँ