aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सर-बुलंद"
इसी अदा पे सितमगर का सर बुलंद हुआनज़र वहाँ पे उठी दिल यहाँ पे बंद हुआ
ये सर-बुलंद होते ही शाने से कट गयामैं मोहतरम हुआ तो ज़माने से कट गया
समुंदरों से कोई मौज-ए-सर-बुलंद उठेकि साहिलों पे तड़पते हैं जाँ-ब-लब कब से
पेड़ हो या कि आदमी 'ग़ाएर'सर-बुलंद अपनी आजिज़ी से हुआ
ख़ाक सेती सजन उठा के कियाइश्क़ तेरे ने सर-बुलंद मुझे
सरकश ओ सर-बुलंद बाम तिरासर-निगूँ शहपर-ए-हवा मेरे
हर्फ़-ए-इंकार सर बुलंद रहाज़ोफ़-ए-इक़रार तक नहीं पहुँचा
उम्र भर सर-बुलंद रखता हैये जो अंदाज़-ए-इंकिसारी है
ज़ौक़ रखता है फ़िक्रमंद तुझेहो के रहना है सर-बुलंद तुझे
सर-निगूँ रतजगों को होना पड़ापरचम-ए-ख़्वाब सर-बुलंद रहा
सब की नज़रों में सर-बुलंद रहेजब तक उन की निगाह में गुज़री
क्या अजब है कि सर-बुलंद करेएक दिन मुझ को इंकिसार मिरा
हो गए क्या क्या फ़साने सर-बुलंदसर-निगूँ सारी हक़ीक़त हो गई
ये भी ख़िदमत में सर बुलंद रहेआइना-दार इक क़मर भी है
नेज़े पे रख के और मिरा सर बुलंद करदुनिया को इक चराग़ तो जलता दिखाई दे
बाहर से जितनी होएगी ता'मीर सर-बुलंदअंदर उसी हिसाब से मिस्मार होएगा
टकरा के इख़्तिलाफ़ की दीवार तोड़ दीज़िद्दी था सर-बुलंद हुआ ख़ानदान में
अलम-ए-आह सर-बुलंद है आजकल हमारा निशाँ मिले न मिले
चढ़ के नज़रों में हुए थे सर-बुलंदगिर के नज़रों से बिचारे हो गए
इसी लिए तो मिरा सर बुलंद रहता हैहमेशा अज़्म रहा मेरे पास पानी का
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