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ग़ज़ल
रातें महकी, साँसें दहकी, नज़रें बहकी, रुत लहकी
सप्न सलोना, प्रेम खिलौना, फूल बिछौना, वो पहलू
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
वो शब भर जागना चाहत में इक गुलज़ार लम्हे की
वो तेरी गोद में सर रख के सोना याद आता है
नोमान अनवर
ग़ज़ल
हर साँस है इक तलवार बनी हर नफ़्स है ग़म का पैमाना
करते हैं मोहब्बत जो उन को काँटों पे भी सोना आता है