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ग़ज़ल
पिया मिलन की भोर हुई है 'रम्ज़' सलोनी भोर
घूँघट में कजरारी आँखें दर्पन दर्पन धूप
रम्ज़ अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
फूलों के गजरे तोड़ गई आकाश पे शाम सलोनी शाम
वो राजा ख़ुद कैसे होंगे जिन की ये चंचल दासी है
यूसुफ़ ज़फ़र
ग़ज़ल
सिमटती धूप तहरीर-ए-हिना सी होती जाती है
सलोनी शाम जैसे ख़ूँ की प्यासी होती जाती है
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
सलोनी शाम के आँगन में जब दो वक़्त मिलते हैं
भटकते हम से उन सायों में कुछ आधे अधूरे हैं
दीपक क़मर
ग़ज़ल
अब तक ज़ेहन पे मंडलाती है दुख सी पीली शाम सलोनी
दिल में आस निरास की उलझन मैं तन्हा इस का दर दस्तक
आज़ाद गुलाटी
ग़ज़ल
रातें महकी, साँसें दहकी, नज़रें बहकी, रुत लहकी
सप्न सलोना, प्रेम खिलौना, फूल बिछौना, वो पहलू
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
वो मानूस सलोने चेहरे जाने अब किस हाल में हैं
जिन को देख के ख़ाक का ज़र्रा ज़र्रा आँखें मलता था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
मुझे तो याद हैं अब तक तुम्हारी सुर्मगीं आँखें
तुम्हें भी क्या वो इक लड़का सलोना याद आता है
नोमान अनवर
ग़ज़ल
हवा-ए-जिंदगी भी कूचा-ए-क़ातिल से आती है
समझ इस बात की लेकिन ज़रा मुश्किल से आती है