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ग़ज़ल
सवाद-ए-शाम-ए-ग़म में यूँ तो देर तक जला चराग़
न जाने क्यूँ थका थका उदास उदास था चराग़
नाज़िर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
क्या फ़ज़ा-ए-सुब्ह-ए-ख़ंदाँ क्या सवाद-ए-शाम-ए-ग़म
जिस तरफ़ देखा किया मैं देर तक हँसता रहा
अख़्तर सईद ख़ान
ग़ज़ल
सवाद-ए-शाम-ए-सफ़र का मलाल कुछ भी नहीं
करूँ मैं अर्ज़ भी क्या अर्ज़-ए-हाल कुछ भी नहीं
आरिफ़ कुकरावी
ग़ज़ल
नक़ीब-ए-सुब्ह तो थे हम रहीन-ए-शाम-ए-ग़म निकले
बड़े झूटे तिरे वा'दे तिरे क़ौल-ओ-क़सम निकले