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ग़ज़ल
ताअत-ओ-अम्न-ओ-सुकूँ का दिल को लेकिन हो जो शौक़
सब्र पर तब-ए-हवस-अंगेज़ को राज़ी करो
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई
सर-ए-आम जब हुए मुद्दई' तो सवाब-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
इत्तिक़ा ओ ज़ोहद से दिल-बस्तगी बाक़ी नहीं
दावा-ए-इस्लाम जैसा पहले था हाँ अब भी है
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मीर सय्यद मुज़फ्फर अली ज़फ़र मुज़ाहरी
ग़ज़ल
शौक़-ए-सवाब कुछ नहीं ख़ौफ़-ए-अज़ाब कुछ नहीं
जिस में न जोश-ए-जोहद हो उस का शबाब कुछ नहीं