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ग़ज़ल
अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ
मिरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आईना तुझे आइने में उतार लूँ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
किसी और को मिरे हाल से न ग़रज़ है कोई न वास्ता
मैं बिखर गया हूँ समेट लो मैं बिगड़ गया हूँ सँवार दो
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
हम तो रहवार-ए-ज़बूँ हैं वो मुक़द्दर का सवार
ख़ुद ही महमेज़ करे ख़ुद ही इनाँ खेंचता है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
कश्ती सवार-ए-उम्र हूँ बहर-ए-फ़ना में 'ज़ौक़'
जिस दम बहा के ले गया तूफ़ान बह गया