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ग़ज़ल
'मोमिन' ओ 'अल्वी' ओ 'सहबाई' ओ 'ममनूँ' के बाद
शेर का नाम न लेगा कोई दाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
कौन सा वो ज़ख़्म-ए-दिल था जो तर-ओ-ताज़ा न था
ज़िंदगी में इतने ग़म थे जिन का अंदाज़ा न था