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ग़ज़ल
हम कितने भी ग़लत थे लेकिन लफ़्ज़ हमेशा चुने सहीह
ख़ुद को ना-माक़ूल भी हम ने अगर कहा माक़ूल कहा
विनीत आश्ना
ग़ज़ल
माधवी शंकर
ग़ज़ल
तेरी जफ़ा वफ़ा सही मेरी वफ़ा जफ़ा सही
ख़ून किसी का भी नहीं तो ये बता है क्या शफ़क़
सेहर इश्क़ाबादी
ग़ज़ल
बताओ कैसे मिलेगी हमें सहीह ता'बीर
जब अपना ख़्वाब ही चश्म-ए-दिगर में रक्खा जाए
अमानुल्लाह ख़ालिद
ग़ज़ल
उन के अब क़ौल-ओ-क़सम होने लगे कुछ-कुछ सहीह
उन के वा'दे अब तो कुछ होने लगे कम-कम ग़लत