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ग़ज़ल
बस अपनी बेबसी की सातवीं मंज़िल में ज़िंदा हूँ
यहाँ पर आग भी रहती है और नौहा भी रहता है
साक़ी फ़ारुक़ी
ग़ज़ल
ठंडे पानी के गगन में सातवीं का चाँद है
या गिरा है बर्फ़ में किंगरा तुम्हारे बाम का
अली अकबर नातिक़
ग़ज़ल
रुमूज़-ए-आशिक़ी तो सातवीं मंज़िल है दरमाँ की
अभी तो अबजद-ए-मा'नी से तू पहचान पैदा कर
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
वो ज़ुलेख़ाई ख़्वाहिश ही अपने सबब से पशेमाँ न थी
सातवें दर के अंदर मिरा हौसला भी अकारत गया