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ग़ज़ल
अब ऐसे हैं कि साने' के मिज़ाज ऊपर बहम पहुँचे
जो ख़ातिर-ख़्वाह अपने हम हुए होते तो क्या होते
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव
नूर के साँचे में ढाले हैं तुम्हारे हाथ पाँव
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
मग़रूर क्यूँ न होवे सनअत पर अपनी साने
किस वास्ते जब उस ने ये गुलिस्ताँ बनाया
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
तेरे कूचे में तिरा जल्वा नज़र आया मुझे
साने-ए-जन्नत को देखा बाग़-ए-जन्नत देख कर
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
मेरा क़ुसूर क्या है साने को चाहिए था
मिक़दार-ए-हुस्न देता सब्र-ओ-क़रार मुझ को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
साने-ए-क़ुदरत तेरे क़लम का क्या कहना लेकिन ये बता
नक़्श मिटाना नक़्श बनाना ये कैसी नक़्क़ाशी है
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
जब से साने ने बनाया है जहाँ का बहरूप
अपनी नज़रों में है सब कौन-ओ-मकाँ का बहरूप