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ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ए-दौराँ है कहाँ साया-फ़गन मेरे बा'द
मुंतज़िर देर से हैं दार-ओ-रसन मेरे बा'द
ख़्वाजा शौक़
ग़ज़ल
ख़ूबों को मोहब्बत है बुरों से भी कि जूँ गुल
रहता है सदा साया-फ़गन ख़ार के ऊपर