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ग़ज़ल
जो जहाँ के आइना हैं दिल उन्हों के सादा हैं
दिल में जा देने को वो हर एक के आमादा हैं
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ग़ज़ल
लगा कर दिल जुदा होना न थी शर्त-ए-वफ़ा साहब
ग़म-ए-फ़ुर्क़त की शिद्दत से करम जौर-ओ-सितम ठहरे
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल में मिरी वहशत के हैं सामाँ कितने
पुर्ज़े-पुर्ज़े नज़र आते हैं गरेबाँ कितने
साजिद रिज़वी
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-हुस्न से गब्र-ओ-मुसलमाँ का चलन बिगड़ा
ख़ुदा की याद भूला शैख़ बुत से बरहमन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
मैं गिला तुम से करूँ ऐ यार किस किस बात का
ये कहानी दिन की हो जाए न क़िस्सा रात का