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ग़ज़ल
जिस ने दिए की कालक को भी माथे का सिंदूर किया
अपने घर की उस दीवार से अपना भेद छुपाए कौन
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
दरियाओं से नूर लिया और मिट्टी को पुर-नूर किया
हरियाली को धरती माँ के माथे का सिंदूर किया
शब्बीर एहराम
ग़ज़ल
मेरे बालों में भी उस वक़्त सफ़ेदी नहीं थी
माँग में तेरी भी सिंदूर नहीं था उस वक़्त
अमित गोस्वामी
ग़ज़ल
माँग के सिंदूर उजड़े पालकी जलती रही
क्यों हुए हंगामे ये शहनाइयाँ कहने लगीं