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ग़ज़ल
कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा
मिरी रात भी तिरे नाम थी उसे किस ने तीरा-शबी कहा
अदा जाफ़री
ग़ज़ल
देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ
एक सितारा बैठे बैठे ताबिश में ख़ुर्शीद हुआ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
चाल में रक़्स-ए-नसीम-ए-सहरी के अंदाज़
बात करते हैं तो ग़ुंचों को खिला देते हैं