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ग़ज़ल
नग़्मा ऐसा भी मिरे सीना-ए-सद-चाक में है
ख़ौफ़ से हश्र बपा गुम्बद-ए-अफ़्लाक में है
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
क्या क्या उलझता है तिरी ज़ुल्फ़ों के तार से
बख़िया-तलब है सीना-ए-सद-चाक शाना क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
उस ने क्या सीना-ए-सद-चाक से खींचा 'फ़ानी'
दिल मैं कहता हूँ वो कहता है कि पैकाँ निकला
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
वो सुब्ह सीना-ए-सद-चाक में है दाग़-ए-जुनूँ
कि जिस से दीदा-ए-ख़ुर्शेद भी दो-चार न हो
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
दर्दमंदान-ए-अज़ल रखते नहीं दरमाँ का ग़म
सीना-ए-सद-चाक गुल मिन्नत-कश-ए-मरहम नहीं
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
दिल तड़पता है पड़ा इस सीना-ए-सद-चाक में
खोल कर बंद-ए-क़बा तू ऐ समन-बर हम से मिल