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ग़ज़ल
तुम्हारे हुस्न का चर्चा करूँगा परियों में
अगर कभी सफ़र-ए-कोह-ए-क़ाफ़ मैं ने किया
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हैं किसी इशारे के मुंतज़िर कई शहसवार खड़े हुए
कि हो गर्म फिर कोई मा'रका मिरे ज़ब्त-ए-हाल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
तरब-आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कोई टूटता सितारा मुझे काश फिर सदा दे
कि ये कोह-ओ-दश्त-ओ-सहरा हैं सुकूत-ए-शब से रौशन
यूसुफ़ ज़फ़र
ग़ज़ल
सुकूत-ए-ग़म को भी तर्ज़-ए-बयाँ कहना ही पड़ता है
मोहब्बत में ख़मोशी को ज़बाँ कहना ही पड़ता है