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ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
तारीकियों में देखता हूँ रोज़ ख़ून-ए-ख़्वाब
शब को सहारा देता शिकस्ता सुतून-ए-ख़्वाब
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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तारीकियों में देखता हूँ रोज़ ख़ून-ए-ख़्वाब
शब को सहारा देता शिकस्ता सुतून-ए-ख़्वाब