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ग़ज़ल
समझ सकते नहीं जो तेरे माथे की शिकन साक़ी
वो क्या जानें कि है बादा-कशी भी एक फ़न साक़ी
एहसान दरबंगावी
ग़ज़ल
वो नियाज़-ओ-नाज़ के मरहले निगह-ओ-सुख़न से चले गए
तिरे रंग-ओ-बू के वो क़ाफ़िले तिरे पैरहन से चले गए
शाज़ तमकनत
ग़ज़ल
सहूँ न हिज्र के सदमे कभी विसाल के बाद
कोई ख़याल नहीं दिल में इस ख़याल के बाद
सय्यद अमीर हसन बद्र
ग़ज़ल
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
ऐश जावेद उन को हासिल है जो हैं तेरी तरफ़
ताएर-ए-क़िबला-नुमा करता है सुब्ह-ओ-शाम रक़्स
बयान मेरठी
ग़ज़ल
क़ासिद किया है अहद जो ईफ़ा-ए-अहद का
सुब्ह-ए-उमीद-ए-वस्ल हुई अपनी शाम-ए-शौक़
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
इस से बढ़ कर और क्या होगा सुबूब-ए-बंदगी
मुझ से 'तिश्ना' उस ने जो कुछ भी कहा मैं ने किया
आलमताब तिश्ना
ग़ज़ल
हवा से सुब्ह-ए-ना-आसूदगी अच्छा किया तू ने
किताब-ए-ज़िंदगी के कुछ वरक़ तू भी उड़ा लाई
मलिका नसीम
ग़ज़ल
जो अपनी ज़ात की तारीकियों में गुम है अभी
वो सुब्ह-ए-नौ का पयम्बर है क्या किया जाए
फ़ाख़िर जलालपुरी
ग़ज़ल
इतना ज़िंदा रहे हम जिस से खुलीं मा'नी-ए-मौत
सुब्ह-ए-ईजाद में क़स्द-ए-अदम आबाद किया
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को
किया किस ने निहाँ दामन की कलियों से गुलिस्ताँ को