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ग़ज़ल
'सुरूर'-ए-सादा को यूँ तो लहू रोना ही आता है
मगर इस सादगी में भी बड़े पहलू निकलते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
जो हर नज़र में ताज़ा करें मय-कदे हज़ार
सच है 'सुरूर'-ए-रफ़्ता को वो याद क्या करें
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता
न हो सब के लिए गर्दिश में जाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
दिल में पोशीदा तप-ए-इश्क़-ए-बुताँ रखते हैं
आग हम संग की मानिंद निहाँ रखते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
आइने जितने भी देखे वो मुकद्दर थे 'सुरूर'
जौहर-ए-सिद्क़-ओ-सफ़ा फिर भी हमारा न गया
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
ये रंग-ओ-बू के तिलिस्मात किस लिए हैं 'सुरूर'
बहार क्या है जुनूँ की जो परवरिश ही नहीं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
जहाँ में हो गई ना-हक़ तिरी जफ़ा बदनाम
कुछ अहल-ए-शौक़ को दार-ओ-रसन से प्यार भी है