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ग़ज़ल
कोई भी हादसा-ए-जाँ हो उस का मंज़र में
उठा के देख लो अख़बार सुर्ख़ियों में हूँ
मोहम्मद अहमद रम्ज़
ग़ज़ल
मुद्द'आ पिन्हाँ पस-ए-अल्फ़ाज़ है जो पढ़ सको
कुछ नहीं पाओगे तुम इन सुर्ख़ियों के दरमियाँ
महमूद शाम
ग़ज़ल
दिल-ए-नादाँ यही रंगीं अदाएँ लूट लेती हैं
शफ़क़ की सुर्ख़ियों ही में तो छुप कर शाम आती है
मुशीर झंझान्वी
ग़ज़ल
'नक़ीब' को थी फ़क़त सुर्ख़ियों से दिलचस्पी
जो मुद्द'आ था वो बैनस्सुतूर लिक्खा था
फ़सीहुल्ला नक़ीब
ग़ज़ल
हमें रखने थे अपने नक़्श-ए-पा भी सुर्ख़ियों में
सो अपनी राह में कुछ और काँटे बो रहे हैं
सलमान ख़याल
ग़ज़ल
कितना रंगीन फ़साना था किसी निस्बत का
जिस के औराक़ सभी सुर्ख़ियों वाले निकले