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ग़ज़ल
जनम जनम के सातों दुख हैं उस के माथे पर तहरीर
अपना आप मिटाना होगा ये तहरीर मिटाने में
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सुर्ख़ी के सबब ख़ूब खिला है गुल-ए-लाला
आरिज़ में लबों में कफ़-ए-दस्त ओ कफ़-ए-पा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़
हो जाए न परतव से तिरे कौन-ओ-मकाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
पेश करता है छुपा कर ग़म-ए-पिन्हाँ लेकिन
उस की तहरीर का हर ज़ेर-ओ-ज़बर चीख़ता है
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल कुछ तो कमी है जो चमन का हर फूल
सुर्ख़ी-ए-ख़ून-ए-शहीदान-ए-वफ़ा माँगे है
वसी सीतापुरी
ग़ज़ल
उफ़ुक़ पे सुर्ख़ी-ए-अज़्म-ओ-अमल झलक उट्ठी
नुज़ूल-ए-सुब्ह है ख़्वाब-ए-गिराँ बदल डालो
वक़ार सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ख़ून-ए-दिल सुर्ख़ी-ए-आग़ाज़-ए-बहाराँ है 'उरूज'
रंग लहराएँगे झुलसे हुए मैदानों पर
अब्दुर रऊफ़ उरूज
ग़ज़ल
मुकम्मल सुर्ख़ी-ए-अफ़्साना-ए-दिल होती जाती है
हमारी दास्ताँ सुनने के क़ाबिल होती जाती है