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ग़ज़ल
दिल किए तस्ख़ीर बख़्शा फ़ैज़-ए-रूहानी मुझे
हुब्ब-ए-क़ौमी हो गया नक़्श-ए-सुलैमानी मुझे
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
तअ'य्युश में गँवा बैठेगा मीरास-ए-सलफ़ सुन ले
जफ़ा-कश बन तो फिर तेरा है ये तख़्त-ए-सुलैमानी
दानिश असरी
ग़ज़ल
नहीं होने का चंगा गर सुलैमानी लगे मरहम
हमारे दिल पे कारी ज़ख़्म उस नावक पलक का है