आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "सुहाग-रात"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "सुहाग-रात"
ग़ज़ल
न सुहाग-रात चमक सकी यूँही कसमसाते सहर हुई
कोई दीप गुम-शुदा थालियों में जलाना हो कहीं यूँ न हो
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
भले आदमी कहीं बाज़ आ अरे उस परी के सुहाग से
कि बना हुआ हो जो ख़ाक से उसे क्या मुनासिबत आग से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
न तर्ज़-ए-ख़ास न अंदाज़-ए-गुल-फ़िशाँ ले कर
पुकारता हूँ मैं तुझ को तिरी ज़बाँ ले कर
क़ैसर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जैसे कोई पा गया हो अपनी मंज़िल का सुराग़
धूप में बैठा हुआ राह-ए-सफ़र में कौन है