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ग़ज़ल
सेहन-ए-गुलशन में चली फिर के हवा बिस्मिल्लाह
चश्म-ए-बद-दूर बहार आई है क्या बिस्मिल्लाह
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कोई नौ-वारिदान-ए-सेहन-ए-गुलशन से ज़रा कह दे
चमन की पत्ती पत्ती को अब अपना मेज़बाँ कर लें