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ग़ज़ल
बाक़ी है ताब-ए-ज़ब्त न ताक़त फ़ुग़ाँ की है
हालत बहुत सक़ीम दिल-ए-ना-तवाँ की है
मोहम्मद विलायतुल्लाह
ग़ज़ल
सलीम कौसर
ग़ज़ल
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
होश की तौफ़ीक़ भी कब अहल-ए-दिल को हो सकी
इश्क़ में अपने को दीवाना समझ बैठे थे हम