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ग़ज़ल
शुक्र करो तुम इस बस्ती में भी स्कूल खुला वर्ना
मर जाने के बा'द किसी का सपना पूरा होता था
अज़हर फ़राग़
ग़ज़ल
न मैं तंदुरुस्त होता न कभी स्कूल जाता
कभी सर में दर्द रहता तो कभी बुख़ार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
इश्क़ के हिज्जे भी जो न जानें वो हैं इश्क़ के दावेदार
जैसे ग़ज़लें रट कर गाते हैं बच्चे स्कूल में
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
बदल गए जब किसी की ग़ुर्बत में आज रस्ते तो लोग समझे
था जाना स्कूल काम पर क्यों गए वो बच्चे तो लोग समझे