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ग़ज़ल
अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली
ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हम ने दुनिया की हर इक शय से उठाया दिल को
लेकिन एक शोख़ के हंगामा-ए-महफ़िल के सिवा
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
हंगामा-ए-ग़म से तंग आ कर इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे
मशहूर थी अपनी ज़िंदा-दिली दानिस्ता शरारत कर बैठे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
लफ़्ज़ों ने पी लिया है 'मुज़फ़्फ़र' मिरा लहू
हंगामा-ए-सदा हूँ सुख़न-वर नहीं हूँ मैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
जब हर इक शोरिश-ए-ग़म ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ तक पहुँचे
फिर ख़ुदा जाने ये हंगामा कहाँ तक पहुँचे