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ग़ज़ल
हसीर-ए-इश्क़ को कब दख़्ल इस महफ़िल में है 'कैफ़ी'
बिसात उस की फ़क़त बैन-ओ-बुका आह-ओ-फ़ुग़ाँ तक है
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
'क़ाएम' है किया हलाहिल ओ आब-ए-ख़िज़र पे हस्र
आ जाए बज़्म-ए-दस्त में जो कुछ सो कीजे नोश
क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल
चल बैठ 'निसार' एक तरफ़ ख़ल्क़ से होकर
निकलेगा वो घर से प कहीं भीड़ तो छट जाए