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ग़ज़ल
एक ये दिन हैं फ़लक-आसार है 'तूर' अब ज़मीं
एक वो दिन थे कि ये शम्स-ओ-क़मर आबाद थे
कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल
सुना तो है बदल जाती हैं रोज़-ओ-शब से तक़दीरें
ख़ुदा जाने न क्यों अब तक 'कलीम'-ए-बे-नवा बदला
कलीम सरौंजी
ग़ज़ल
हदीस-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-शम्-ओ-परवाना नहीं कहते
हम अपना हाल-ए-दिल कहते हैं अफ़्साना नहीं कहते
फ़िगार उन्नावी
ग़ज़ल
हदीस-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत का राज़दाँ हूँ मैं
जो मावरा-ए-तकल्लुम है वो बयाँ हूँ मैं
सूफ़ी ज़मज़म बिजनोरी
ग़ज़ल
पस-ए-तौबा हदीस-ए-मुतरिब-ओ-पैमाना कहते हैं
ये इक भूला हुआ पर आज हम अफ़्साना कहते हैं
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
ख़ुदा-ए-अर्श-ए-सुख़न से हूँ फ़ैज़याब 'कलीम'
कि तूर-ए-शेर से लाया हूँ मैं किताब भी साथ
अता हुसैन कलीम
ग़ज़ल
हिकायत-ए-हुस्न-ए-यार लिखना हदीस-ए-मीना-ओ-जाम कहना
अभी वही कार-ए-आशिक़ाँ है सुकूत-ए-ग़म का कलाम कहना