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ग़ज़ल
हद-ए-इमकान ख़लाओं से परे माँगता है
लफ़्ज़ वो अपने ख़यालों से बड़े माँगता है
मोहम्मद नईम जावेद नईम
ग़ज़ल
पाँव शल हो गए लेकिन न पता तेरा मिला
जुस्तुजू में तिरी मैं ता-हद-ए-इम्कान गया
हैदर हुसैन फ़िज़ा लखनवी
ग़ज़ल
हुआ है अबरू-ए-जानाँ से दिल-ए-बेताब सद-पारा
मुक़ाबिल हो नहीं सकता दम-ए-शमशीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
उस की अपनी सोच है ये उस का अपना ज़र्फ़ है
बे-वक़ूफ़ी कर रहा है वो तो क्या हम भी करें