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ग़ज़ल
जाँचता हूँ वुसअत-ए-दिल हमला-ए-ग़म के लिए
इम्तिहाँ है रंज-ओ-हिरमाँ की फ़रावानी मुझे
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
हमला अपने पे भी इक बाद-ए-हज़ीमत है ज़रूर
रह गई है यही इक फ़त्ह ओ ज़फ़र की सूरत
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
रिया-कारियों से मुसल्लह ये लश्कर मुझे मार देंगे
मैं बच भी गया तो नए हमला-आवर मुझे मार देंगे
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
सब हिफ़ाज़त कर रहें हैं मुस्तक़िल दीवार की
जब कि हमला हो रहा है मुस्तक़िल बुनियाद पर